मूंगफली की फसल के लिए पोटेशियम (K) खाद | Moongfali ki upaj ke liye potassium (K) khad
पोटाशियम (K) खाद की मात्रा 40 से बढ़ाकर 80 किग्रा K2O/हेक्टेयर, विशेष रूप से हिस्सों को समयबद्ध शैली में डालने से, मूंगफली की उपज में 30% तक की महत्वपूर्ण वृद्धि हुई।
पूर्वी भारत के मूंगफली उगाने वाले किसानों ने कुछ दमदार साक्ष्य दिए हैं कि कैसे पोटेशियम खाद का सही चयन और उसके इस्तेमाल की सही रणनीति इन स्वादिष्ट और पौष्टिक दानों की उपज में 30% तक की वृद्धि देती है।
कम पैदावार वाली एक अत्यधिक महत्वपूर्ण फसल
भारत में उगाई जाने वाली नौ महत्वपूर्ण तिलहनी फसलों में मूंगफली सबसे महत्वपूर्ण है। मूंगफली में 55% तक वसा और 28% तक प्रोटीन होता है। कोई आश्चर्य नहीं कि यह ग्रामीण और शहरी भारतीयों के लिए समान रूप से स्वादिष्ट और लोकप्रिय भोजन है।
भारत के मूंगफली उत्पादक राज्यों की तालिका में गुजरात पहले स्थान पर है। हालांकि, जहाँ भी मूंगफली उगाई जाती है वहां भी वह फसल अक्सर अपनी क्षमता से काफी कम उपज देती है । यह कम उत्पादकता कई कारणों से है जैसे वर्षा की कमी, अपर्याप्त फसल रोटेशन, कम उपजाऊ अनुपयुक्त भूमि पर फसल आदि ।
उड़ीसा, भारत के पूर्व में एक तटीय राज्य, एक अन्य महत्वपूर्ण मूंगफली उत्पादक क्षेत्र है। मिट्टी की उच्च अम्लता और ऊपर से कम या असंतुलित खाद उपयोग वहाँ की उत्पादकता को बाधित करने वाली समस्याओं में शामिल है। वास्तव में, मिट्टी की कम नमी और बीमारी के कारण अक्सर फसल पूरी तरह से विफल हो जाती है।
उड़ीसा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की एक टीम (अंतर्राष्ट्रीय पोटाश संस्थान (आईपीआई), स्विट्जरलैंड से वित्तीय सहायता के साथ), ने सोचा कि बेहतर उपज संभव हो सकती है, खासकर अगर किसानों द्वारा पोटेशियम खाद के उपयोग को बेहतर ढंग से समझा और संशोधित किया जाए। उन्होंने जांच शुरू की कि क्या होगा यदि पोटेशियम खाद की मात्रा और लगाने की पुनरावृत्ति बढ़ाई जाए।
मूंगफली उपज में पोटेशियम की भूमिका
कई फसलों की तरह, पोटेशियम एक आवश्यक पोषक तत्व है। यह पौधों की वृद्धि को प्रभावित करने वाली अधिकांश प्रक्रियाओं में शामिल है। यह विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है – विशेष रूप से जड़ स्थापना – और बाकी दिन-प्रतिदिन के कार्य जिसमें पानी और पोषक तत्व का अवशोषण और भूमि / वायु से कार्बन एक्सचेंज शामिल हैं। इतना ही नहीं बल्कि पोटेशियम पौधों को बीमारियों, कीटों, सूखे, लवणता, ठंड, बर्फ और यहां तक कि जल-जमाव आदि के बुरे प्रभावों से निपटने में भी मदद करता है। यही कारण है कि पौधे के स्वास्थ्य, विकास और उत्पादकता के लिए सही समय पर सही मात्रा में पोटेशियम का होना महत्वपूर्ण है।
पोटैशियम और मूंगफली की सही मात्रा और सही समय
शोध दल का उद्देश्य उड़ीसा में रबी (सर्दियों) मूंगफली के लिए उचित पोटेशियम खुराक निर्धारित करना था, ताकि पोटेशियम को केवल एक बार लगाने (रोपण से पहले एक बुनियादी खाद वितरण) या खुराक को दो अनुप्रयोगों (मूल आवेदन और फिर फूल आने पर) में विभाजित करने के बीच के अंतर की तुलना की जा सके। वे एक ऐसी सुझाव व्यवस्था भी स्थापित करना चाहते थे जिसे किसान समझ सकें और सफलता के साथ स्वयं उसका उपयोग कर सकें।
इस परिक्षण का आयोजन उड़ीसा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले कृषि महाविद्यालय के कृषि विज्ञान अनुसंधान फार्म में किया गया। उस स्थान पर रेतीली दोमट मिट्टी है जो थोड़ी सी अम्लीय, जैविक कार्बन में मध्यम एवं उपलब्ध नाइट्रोजन तथा पोटेशियम ऑक्साइड में कम है। यह गुण इस फार्म को इस क्षेत्र के मूंगफली किसानों के खेतों जैसा बनाते हैं । इस क्षेत्र में गर्म और आर्द्र गर्मी (मार्च-जून), गर्म और गीला मानसून (जून के अंत से मध्य अक्टूबर) और एक हल्की, शुष्क सर्दियों (नवंबर से फरवरी) के साथ एक साझा उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु भी है। मौसम के कारण यहाँ मूंगफली की खेती दिसंबर से जून तक ही संभव है।
एक लोकप्रिय मूंगफली की वैराइटी का प्रयोग किया गया जिसे ‘देवी’ के नाम से जाना जाता है। मूंगफली पोटेशियम खाद प्रयोग में आठ क्रमरहित सैम्पल रखे गए, हरेक सैम्पल के तीन कॉपियों के ब्लॉक बनाए गए। तालिका 1 में दर्शाए अनुसार, मूंगफली के ब्लॉकों को खाद की विभिन्न मात्राओं से उपचारित किया गया। खाद की पहली, या मूलभूत खुराक, जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों के सामान्य अनुशंसित मिश्रण को शामिल किया गया था, को बुवाई के समय क्यारियों की खांचों में रखा गया। बुवाई के कुछ निश्चित दिनों बाद K2O के हिस्से 40 से बढ़ा कर 80 किलोग्राम/हेक्टेयर की मात्रा में बनाए गए और उन्हें मूंगफली की पंक्तियों के बगल में डाला गया।
तालिका 1. बुवाई के बाद के दिन (डेज आफ्टर सोविंग- डी ए एस ) और नाइट्रोजन (एन), फास्फोरस (पी) और पोटेशियम (के) आवेदन का विस्तृत विवरण।
सैम्पल क्रमांक | पोषक विवरण | P2O5 बुवाई के समय (बेसल) | K2O बुवाई के समय (बेसल) | K2O 30 DAS पर (ब्लूम) |
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किलो/हेक्टेयर | किलो/हेक्टेयर | किलो/हेक्टेयर | ||
टी1 | कंट्रोल (कोई एनपीके नहीं) | |||
टी2 | किसान प्रैक्टिस (18:46:30 किलो एनपीके/हेक्टेयर) | |||
टी3 | 100% अनुशंसित फ़ॉस्फोरस -पोटैशियम | 40 | 40 | |
टी4 | 100% अनुशंसित फ़ॉस्फोरस + 150% पोटैशियम | 40 | 60 | |
टी5 | 150% अनुशंसित फ़ॉस्फोरस + 200% पोटैशियम | 60 | 80 | |
टी6 | 100% अनुशंसित फ़ॉस्फोरस-पोटैशियम विभाजित पोटैशियम खुराक | 40 | 20 | 20 |
टी7 | 100% अनुशंसित फ़ॉस्फोरस + 150% पोटैशियम विभाजित पोटैशियम खुराक | 40 | 30 | 30 |
टी8 | 150% अनुशंसित फ़ॉस्फोरस + 200% पोटैशियम विभाजित पोटैशियम खुराक | 60 | 40 | 40 |
जैसे-जैसे फसल विकसित हुई, शोधकर्ताओं ने विभिन्न पहलु जैसे सूखे की क्षति, पौधों की प्रक्रियाओं और पानी द्वारा क्षति जैसे प्रभावों के संकेतकों को मापने के लिए फसल की सावधानीपूर्वक निगरानी की। जब फसल पक गई थी, तो प्रत्येक भूखंड के बीच से पांच पौधों को क्रमरहित रूप से चुना गया, धूप में सुखाया गया, तौला गया और प्रति हेक्टेयर फली की उपज की गणना की गई। फली का 1 किलो नमूना खोल दिया गया और प्रत्येक भूखंड और खाद-उपचार के परिणामवश उपजे दानों की संख्या और वजन निर्धारित करने के लिए मापतोल की गई।
पोटेशियम का उचित निर्धारण कैसे करें
उड़ीसा में प्रयोग के परिणामों ने पहले के परिक्षण परिणामों की पुष्टि की- कि मूंगफली के लिए कुल पोटेशियम उर्वरक की खुराक बढ़ाने और इसे समय के दो भागों में विभाजित कर आवेदन करने से उपज में वृद्धि होती है। यह तथ्य है कि इस बेहतर खाद रणनीति से मूंगफली की उपज में 30% की महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई ।
इस काम से पता चला कि पोटेशियम की सुझाई गई खुराक को 40 से बढ़ा कर 80 किलोग्राम K2O/हेक्टेयर तक बढ़ाने से फसल को कृषि संबंधी लाभ हुए। यह शायद इसलिए है क्योंकि पोटेशियम की पर्याप्त मात्रा अन्य पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन और पोटाश के उपयोग की प्रभावशीलता बढाती है, विशेष रूप से विकास के प्रारंभिक चरण में जब जड़ की स्थापना महत्वपूर्ण होती है।
यह तो ठीक है लेकिन नई फसल एक सीमा तक ही पूरे मौसमी पोटेशियम की खुराक अवशोषित कर सकती है। डाले गए पोटेशियम का अधिकांश हिस्सा लीचिंग (थक्के बनना) या मिट्टी में ही मिल जाने के कारण खो सकता है। ऐसे में डाला गया पोटेशियम फसल के बाद वाले विकास चरणों में उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होता जबकि उसकी आवश्यकता बढ़ जाती है । यही कारण है कि इस प्रयोग, और अन्य में, पोटेशियम के आवेदन को दो भागों में, यानी रोपण और पुष्पन के समय, में विभाजित करना, मूंगफली के पोषण और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए इतना प्रभावी दीखता है।
जैसा कि अक्सर शोध कार्य के मामले में होता है, यह परिणाम इस बारे में और भी अधिक प्रश्नों को जन्म देते हैं जैसे कि उपज में कोई ख़ास वृद्धि होनी बंद हो जाए उससे पहले तक पोटेशियम खुराक के लिए ऊपरी सीमा क्या है? इसमें कोई संदेह नहीं कि और जांच-परिक्षण होंगे – और परिणाम भी।
बहरहाल, सही मात्रा में और सही समय पर पोटेशियम उर्वरक प्रदान करने के महत्वपूर्ण लाभ, भारत के उड़ीसा में मूंगफली किसानों के लिए पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हैं।
अधिक जानकारी
इस शोध के बारे में अधिक जानकारी के लिए इंटरनेशनल पोटाश इंस्टीट्यूट (आईपीआई) द्वारा प्रकाशित ई-आईएफसी में पूरी रिपोर्ट देखें।