पोषण परामर्श
केला उगाने के लिए

केला के उर्वरीकरण, सर्वोत्तम अभ्यास, उपयुक्त उत्पाद, ज़मीनी परीक्षण और इसके साथ जो कुछ भी आप जानना चाहते हैं।

केला (Musa spp.) उगाने के लिए परामर्श

  • केले विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में अच्छी तरह उगते हैं।

  • मिट्टी का पीएच 5.5 और 6.5 के बीच होना चाहिए, और मिट्टी जमी हुई नहीं होनी चाहिए

  • पत्ती निकलने के लिए सबसे अनुकूल तापमान लगभग 25-30⁰C है। केले की फसल ठण्ड के प्रति थोड़ी संवेदनशील होती है।

  • उष्णकटिबंधीय वातावरण में, एक फसल चक्र सात महीने जितना छोटा भी हो सकता है।

  • 10⁰C से नीचे द्रुतशीतन होता है, और बर्फ द्वार स्थाई क्षति तब हो जाती है जब पत्तियां 10-15 मिनट के लिए भी -2⁰C या नीचे के तापमान में रह जाएं।

केले के पौधों को पूरे धूप से लेकर आंशिक छाया तक वाले आश्रय स्थान पर उगाएं
केले के पौधों को उपजाऊ, नम लेकिन अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है

पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ

अनुमानित पोषक तत्व ग्रहण (किलोग्राम / टन): 

NP2O5K2OMgOSO3CaO
फल189297784950101
छद्म तने199276607677126

50 टन/हेक्टेयर ताजा फल @ 2000 पौधे/हेक्टेयर

स्रोत: आईपीआई बुलेटिन 7 – उच्च उपज के लिए उर्वरक – केला (1989)।

फसल के मौसम में केले द्वारा ग्रहण पोषक तत्वों की गतिविधियां

Offtakes
(kg/t ff*)
Offtakes
(kg/ha) 40 t ff*
Offtakes
(kg/ha) 40 t ff*
N7.10284426
P2O50.582335
K2O20.21
8081213
MgO1.60238356
SO31.526496
CaO5.946191

* तफ = ताजे फल

स्रोत: अनुसंधान डेटा , आई एन आई ए पी – आई पी आई (2020)

पोषक तत्वों की भूमिका

NP2O5K2OMgOSO3CaO
उपज पैरामीटर:
उपज++++++
गुच्छे का वजन++++
हाथ प्रति गुच्छा++
फल प्रति हाथ+
फल संख्या+
फलों का वजन+
फल व्यास+
फल की लंबाई+
गुणवत्ता पैरामीटर:
स्टार्च+++
शर्करा+
अम्ल++
चीनी / एसिड अनुपात+
कुल घुलनशील ठोस++
एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन डी)+
छिलका विकार-

+ = सुधार; – = घट रहा है;

स्रोत: केला फसल गाइड, हाइफा।

पोषक तत्वों की कमी

NutrientDescription
नाइट्रोजनकमी के लक्षण तेजी से दिखाई देते हैं और साथ ही सभी उम्र के पत्तों पर दिखाई देते हैं।
पत्तियाँ बहुत छोटी हो जाती हैं और हल्के हरे रंग की हो जाती हैं।
शिरा के मध्य भाग, डंठल और पत्ती के खोल लाल गुलाबी रंग के हो जाते हैं, पत्तियों का उत्पादन दर स्पष्ट रूप से कम हो जाती है। लगातार पत्तियों के बीच की दूरी कम हो जाती है, एक 'रोसेट उपस्थिति' का निर्माण होता है, और खराब वृद्धि के कारण पौधे का विकास रुक जाता है। फलों के गुच्छे छोटे हो जाते हैं, गुच्छों की संख्या कम हो जाती है।

संदर्भ: राहुल माने बीएससी।
फ़ॉस्फ़ोरसफ़ॉस्फ़ोरसकी कमी से ओज कम हो जाता है, विकास अवरुद्ध हो जाता है और जड़ का विकास खराब हो जाता है। सबसे पुरानी 4-5 पत्तियों के किनारे पीले से हो जाते हैं। फ़ॉस्फ़ोरस की गंभीर कमी के तहत पत्तियों में बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं जो अंततः पत्ती के किनारों के 'आरी के दांत' जैसे जले किनारे पैदा करते हैं। प्रभावित पत्तियाँ मुड़ जाती हैं और डंठल टूट जाते हैं, नई पत्तियों का रंग गहरा नीला-हरा हो जाता है। पौधे पर फल भी देरी से पकते हैं।
पोटैशियमपोटैशियम की कमी के लक्षण आमतौर पर फूल आने के समय दिखाई देते हैं।
पुरानी पत्तियों पर तेजी से नारंगी/पीले रंग दीखते हैं और वह बाद में सूखकर मर जाते हैं। इन पत्तियों की मध्य-शिरा अक्सर अपनी लंबाई के दो-तिहाई हिस्से पर मुड़ी हुई या टूटी हुई होती है, जिससे पत्ती नीचे की ओर इशारा करती है।
पौधे छोटे पत्तों का उत्पादन करते हैं, फूल आने में देरी करते हैं, गुच्छों का आकार कम होता है। ये लक्षण पौधे के विकास पर प्रभाव से पहले दिखाई देते हैं।
कैल्शियमपौधे में कम कैल्शियम की गतिशीलता के कारण, आमतौर पर इसके लक्षण विकास के पूरे खिलते अवस्था के बाद, या असंतुलित पोटेशियम अनुप्रयोग के परिणामस्वरूप नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
पत्ती के किनारों के पास शिराओं के बीच पीलापन दीखता है। 'स्पाइक पत्ते' की विकृति या पत्ती के ब्लेड की अनुपस्थिति, फल पकने पर फल आसानी से टूट जाते हैं, फल झुक जाता है, अधिक अवतल स्वरुप का दीखता है; उसका व्यास कम और उसमें गूदा भी कम होता है।
मैग्नीशियमपुरानी पत्तियों के पत्तों के किनारों का क्लोरोसिस। पीलापन मध्य शिरा की ओर फैलता है, मध्य शिरा के पास एक हरे रंग की पट्टी शेष रहती है। क्लोरोसिस सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने वाली पत्तियों में अधिक गंभीर होता है, पेटीओल्स पर बैंगनी धब्बे होते हैं।
छद्म-तने से पत्तियों की सतह अलग हो जाती है। पौधे की ऊंचाई कम होने से फल अच्छे से नहीं पकते और बेस्वाद हो जाते हैं।
सल्फ़रइसकी कमी ले लक्षण नाइट्रोजन की कमी के समान होते हैं, लेकिन पीलापन नई पत्तियों सहित पूरे पौधे में समान और सामान्य होता है। दिल के अकार वाला पत्ता सफेद सा हो जाता है, और अन्य पत्ते बहुत नरम हो जाते हैं और आसानी से फट जाते हैं। अधिक कमी वाले पौधों में तना मोटा किन्तु छोटा और पत्तियां मुड़ी हुई होती हैं।

स्रोत: https://vikaspedia.in

केला उगाने सम्बंधित सुझाव

चरण 1: अंकुर

मइक्रोप्रॉपैगेटेड (सूक्ष्मप्रवर्धित) पौध तैयार करने वाली प्रतिष्ठित नर्सरियों से बीज प्राप्त किए जा सकते हैं या अनुभवी फल उत्पादकों द्वारा स्व-उत्पादित किए जा सकते हैं।

चरण 2: रोपण

संयोजित खेत और आसान फसल प्रबंधन के लिए पौधों को उसी आधार पर अलग किया जाना चाहिए। उन गड्ढों में, जहां अंकुर नहीं निकले हैं, रोपण के 30 से 40 दिन बाद नए पौधे लगाए जा सकते हैं।

चरण 3: फसल प्रबंधन

  •  प्रारंभिक चरणों में विशेष रूप से खरपतवार नियंत्रण किया जाना चाहिए।
  • छंटाई का उद्देश्य गुच्छे में अतिरिक्त टहनियों को खत्म करना है, प्रति पौधे एक ‘बेटी’ और बाद में ‘पोती’ को छोड़ देना। प्रत्येक झुरमुट में आमतौर पर तीन पौधे होंगे: माँ, बेटी और पोती।
  • कांट-छांट और सफाई द्वारा टूटी, सूखी, रोग-संक्रमित पत्तियां, और वो भी जो गुच्छे को नुकसान पहुंचा रही हैं, उन्हें हटा दिया जाता है। यह टहनियों के विकास में सुधार करता है, रोग की संभावना को कम करता है, हवा की आवाजाही और चमक को बढ़ाता है और फल पकने पर कटाई को आसान बनता है।

चरण 4: अन्तर्भाग और फूलों को हटाना 

केले के “अन्तर्भाग” को खोलने के तुरंत बाद आखिरी लॉट से 10 से 20 सेमी नीचे हटा दिया जाना चाहिए। यह गुच्छे के विकास को गति देता है, फलों की गुणवत्ता में सुधार करता है और कीट समस्या को कम करता है। फूलों को “अन्तर्भाग” के उन्मूलन के तुरंत बाद हटा दिया जाना चाहिए और उन किस्मों में, जिसमें हमेशा नर फूल ही आते हों, उसमें अंतिम गुच्छे के नीचे से भी हटा देना चाहिए। इससे भी कीट संक्रमण कम होता है।

चरण 5: गुच्छे को किसी थैले में डालें

यह कार्यवाही फलों को कीटों तथा शारीरिक क्षति से बचाता है और गुच्छों के विकास को तेज और समान करता है। यह “अन्तर्भाग”, नर फूल और आखिरी गुच्छा को हटाने के बाद किया जाना चाहिए।

उर्वरक का प्रयोग फसल की अवस्था के अनुसार एवं मिट्टी की मात्रा, पोषक तत्वों की निकासी और मौसम की स्थिति के आधार पर किया जाना चाहिए।

विभिन्न देशों के लिए, वर्षा की अवधि या सिंचाई की आवृत्ति के अनुसार उर्वरक को प्रति वर्ष 4 से 24 बार डालना पड़ सकता है। हालांकि, धीमी एवं नियंत्रित आपूर्ति वाले उर्वरकों का उपयोग करते समय उनके डालने की संख्या कम हो सकती है और उपज, गुणवत्ता और लाभप्रदता पर सकारात्मक प्रभाव की आशा रखी जा सकती है।

मध्यम से उच्च उत्पादन प्राप्त करने के लिए एक माध्यमिक दर के रूप में नाइट्रोजन, P2O5(फॉस्फोरस पेंटॉक्साइड ), K2O (पोटैशियम ऑक्साइड), CaO (कैल्शियम ऑक्साइड), MgO (मैग्नीशियम ऑक्साइड) और S (सल्फर) की अनुमानित प्रयोग मात्रा क्रमशः लगभग 400-60-600-130-60-60 किग्रा/हेक्टेयर/वर्ष होनी चाहिए , इसके अतिरिक्त प्रत्येक खेत की उपज के स्तर के आधार पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की एक उचित दर भी होनी चाहिए।

केला सम्बंधित परीक्षण

केला लाभ अनुपात में वृद्धि
कुरुंदवाड़, मोहोल, सोलापुर, महाराष्ट्र, 2020

17

केले की उपज
केले के तने का बेहतर घेरा
गाँव: तंदलवाड़ी, तालुका: रावेर, जिला: जलगाँव, महाराष्ट्र, 2020

5

केले की उपज
केले के बड़े गुच्छों के लिए न्यूट्रीवॉन्ट
गाँव: मांडने, तालुका: शाहदा, जिला: नंदुरबार, महाराष्ट्र, 2022

40

केले प्रति गुच्छा

प्रश्न एवं उत्तर

केले के संबंध में किसानों द्वारा अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न।

  • साल में कितनी बार उर्वरक का उपयोग किया जाए यह स्थानीय परिस्थितियों और सिंचाई व्यवस्था और प्रकार पर निर्भर करता है। कुछ किसान साल में 24 बार तक उर्वरक डालते हैं, लेकिन अधिक कुशल उर्वरकों का चयन, और उपयोग, करके इस संख्या को कम किया जा सकता है।

सम्बंधित फसलें

अन्य फसलों को देखें