अंगूर के खेती के लिए खाद की विशेषता | Angoor ke kheti ke liye khad
अंगूर के उर्वरीकरण, सर्वोत्तम तरीके, उपयुक्त प्रोडक्ट्स, ज़मीनी परीक्षण और बहुत कुछ जो आपको जानने की आवश्यकता है।
अंगूर (Vitis vinifera) उगाने के लिए सुझाव
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मिट्टी: अंगूर की बेलें खुद को कई प्रकार की मिट्टीयों के अनुसार ढाल लेती हैं। यदि मिट्टी की गहराई, बनावट और पानी की उपलब्धता अनुकूल हो, तो अंगूर की बेलें बची रहेंगी और खराब उर्वरता वाली मिट्टी में भी ठीक-ठाक गुणवत्ता वाले फल दे देंगी। वैसे अंगूर की बेलों को अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
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उच्च पीएच (7.5 से ऊपर) वाली मिट्टी में फॉस्फोरस की कमी हो सकती है, लेकिन आयरन और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी दिखाई दे सकते हैं।उच्च पीएच (7.5 से ऊपर) वाली मिट्टी में मुख्यतः फॉस्फोरस की कमी होती है, लेकिन आयरन और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी दिख सकती है।
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यदि मिट्टी पर्याप्त गहरी है, तो मिट्टी के कटाव को रोकने और खरपतवारों को रोकने के लिए बेलों की पंक्तियों के बीच कोई अच्छी घास लगाई जा सकती है।
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साइट का चयन: स्थानीय 'माइक्रॉक्लाइमेट' (अति निकटतम जलवायु) किसी भी स्थान पर अंगूर लगाने की व्यावहारिकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सबसे महत्वपूर्ण पहलु ठंडी हवा और जल निकासी है।
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साइट चयन के लिए विचार करने के लिए अन्य कारक भी हैं जैसे सूर्य के पूरे प्रकाश की उपलब्धता लेकिन आंधी अथवा भारी ओलों से मुक्ति।
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अंगूर को आमतौर पर गर्म, शुष्क जलवायु, यानी गर्म दिन, ठंडी रातें और कम आर्द्रता की आवश्यकता होती है। ऐसा वातावरण आम तौर पर उच्च गुणवत्ता वाले अंगूरों का उत्पादन करता है।
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किसी भी स्थल विशेष पर मौसम इतना लंबा होना चाहिए कि लताओं के फल एवं वानस्पतिक - दोनों ही भाग परिपक्व हो सकें। फल और वनस्पति को पकने के लिए पर्याप्त गर्मी होनी चाहिए।
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बेलों की सुप्त अवस्था सुनिश्चित करने के लिए सर्दी का मौसम लम्बा और पर्याप्त ठंडा होना चाहिए। वसंत के अंत की ठंढ नए कलियों के लिए हानिकारक होती है क्योंकि वह ठन्डे तापमान के प्रति संवेदनशील होते हैं, यह फूलों के गुच्छों को नुकसान पहुंचा सकता है या उन्हें नष्ट भी कर सकता है।
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फसल द्वारा पर्याप्त प्रकाश संश्लेषण सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त घंटों की धूप होनी चाहिए। यह इसलिए ताकि फल और बेलों को परिपक्व करने के लिए पर्याप्त कार्बोहाइड्रेट की आपूर्ति हो सके।
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फल पकने की अवधि के दौरान काफी कम या अधिक बारिश से अंगूर में विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं।
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ड्रिप सिंचाई अंगूर उत्पादन के लिए पानी की आपूर्ति का अनुकूलन करती है। ड्रिप सिंचाई अब गहन उपज के वातावरण में उपयोग की जाने वाली प्रमुख सिंचाई विधि है, जिससे लम्बी उत्पादन अवधि, बेहतर गुणवत्ता और उच्च पैदावार होती है। हालांकि, सभी क्षेत्रों में इसकी अनुमति नहीं है, विशेष रूप से तब जब उस क्षेत्र में संरक्षित भौगोलिकता का संकेत हो।
अंगूर के विनयार्ड के दृश्य
गुच्छे के पूरे होने के पहले अंगूर
पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ
कई अन्य फलों के फसलों की तुलना में, अंगूर की बेलों में खनिज की कमी प्रायः कम ही होती है और पौधे के पोषक तत्वों की मांग भी कम होती है।
फास्फोरस, पोटेशियम और चूने का प्रयोग मिटटी के परीक्षण और पत्ती-विश्लेषण के परिणामों के आधार पर किया जाना चाहिए।
मिट्टी की लीचिंग (पोषक तत्व का मुख्य खाद से थक्के बनकर अलग हो जाना) के माध्यम से नुकसान को कम करने के लिए सक्रिय नाइट्रोजन के ग्रहण की अवधि के दौरान ही नाइट्रोजन उर्वरक को डाला जाना चाहिए। इसमें कली फूटने से लेकर अंगूरों के पकने की शुरुआत तक की अवधि सम्मलित है, और यदि पत्तियां न गिरी हों तो गुच्छों को तोड़ने के तुरंत बाद भी।
वसंत के मौसम में एक बार में ही पूरी मात्रा डालने के बजाय नाइट्रोजन के विभिन्न विभाजित हिस्से समय-समय पर डालने का सुझाव दिया जाता है। अधिकांश नाइट्रोजन के स्वरूपों का समान रूप से अंगूर के बागों में उपयोग किया जा सकता है।
मौसम के दौरान अंगूर प्लांटेशन में पोषक तत्वों की ग्रहणशीलता
ग्रहणशीलता के निम्नलिखित लक्षण ऊपर देखे जा सकते हैं:
- शुरुआती मौसम के दौरान नाइट्रोजन का ग्रहण अपेक्षाकृत कम होता है, यह फलों के लगने तक तेजी से बढ़ता है, फिर कटाई तक तेजी से घटता है, और फिर फसल के कटाई के बाद फिर से तेजी से बढ़ता है।
- फॉस्फोरस भी समान लक्षण दिखाता है, लेकिन यह फसल के काटने के बाद ही बढ़ता है।
- शुरू में पोटैशियम ग्रहण की दर नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की तुलना में अधिक होती है, फिर कटाई तक तेज़ी से गिरती है और फिर उसके बाद थोड़ा सा बढ़ती है।
पोषक तत्वों की भूमिका
नाइट्रोजन
- उच्च पैदावार को बढ़ावा देता है और फसल की वानस्पतिक वृद्धि सुनिश्चित करता है।
- प्रोटीन के संश्लेषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो सीधे विकास और उपज में सहायक है ।
फास्फोरस
- एक अच्छी जड़ प्रणाली के विकास को बढ़ावा देता है – अधिक फूलों के लिए आवश्यक और उस वजह से अधिक फलों के लगने और उनके अधिक से अधिक बचाव में सहायक।
- पौधे में उचित ऊर्जा प्रबंधन के लिए आवश्यक। कोशिका विभाजन को बढ़ाता है।
पोटैशियम
- फलों तक ऊर्जावाहक शर्करा के आपूर्ति को बढ़ाता है। करीब दसियों एंजाइमों का सह-कारक। मुख्य रूप से ‘स्टोमेटा अपर्चर’ के माध्यम से जल प्रबंधन को नियंत्रित करता है।
- फल की चीनी सामग्री को बढ़ाता है। कई प्रकार के अजैविक और जैविक क्षति के प्रति पौधे की संवेदनशीलता को कम करता है। गहरे हरे रंग के फल, सख्त गूदे, आकार और कुल उपज में सुधार करता है।
कैल्शियम
- कोशिका-दीवार की स्थिरता को बढ़ावा देता है, पौधे को एक मजबूत संरचना और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है।
- पर्याप्त कैल्शियम, ब्लॉसम-एंड रोट (BER यानि पूरी तरह से खिलने के बाद फूल का सूख जाना) को रोकता है। यह बेहतर आयु भी प्रदान करता है।
मैग्नीशियम
- क्लोरोफिल अणु का मध्य भाग है, जो प्रकाश संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पौधे द्वारा लोहे के उपयोग को बढ़ाता है।
- मैग्नीशियम पौधे में फास्फोरस का वाहक है। यह एक एंजाइम एक्टिवेटर और कई एंजाइमों का एक घटक है। पर्याप्त मैग्नीशियम अनुप्रयोग गहरे हरे रंग का फल प्राप्त करने में मदद करता है।
लोहा
- प्रोटीन और क्लोरोफिल संश्लेषण के लिए आवश्यक। ऊर्जा हस्तांतरण और श्वसन प्रणाली से जुड़े कई एंजाइमों में आयरन एक महत्वपूर्ण कारक है।
मैंगनीज़
- चीनी और कार्बोहाइड्रेट के स्थानान्तरण, परागण और बीज उत्पादन में सुधार करता है। कोशिका विभाजन और कोशिका-भित्ति निर्माण दोनों ही कैल्शियम के ग्रहण और उपयोग से संबंधित हैं।
जिंक
- auxin (ऑक्सिन)के उत्पादन के लिए जिंक की आवश्यकता होती है, जो एक आवश्यक विकास हार्मोन है। प्रोटीन और क्लोरोफिल संश्लेषण को बढ़ावा देता है। स्टार्च निर्माण और उचित जड़ विकास के लिए आवश्यक।
कॉपर
- नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट के मेटाबोलिज्म (पौधे में उसके संश्लेषण और उपयोग) में सहायक। प्रकाश संश्लेषण और श्वसन को तीव्रता एवं बढ़ावा देने वाला। ‘अमीनो एसिड’ को प्रोटीन में बनाने और परिवर्तित करने में एंजाइमों का महत्वपूर्ण भाग है।
मॉलिब्डेनम
- यह पोषक तत्व ‘नाइट्रेट रिडक्टेस’ गतिविधि के लिए महत्वपूर्ण है, नाइट्रेट्स को अमीनो एसिड में परिवर्तित करता है। अकार्बनिक फॉस्फोरस को जैविक रूपों में रूपांतरित करता है।
पोषक तत्वों की कमी
पोषक तत्व | विवरण | |
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नाइट्रोजन | • परिपक्व पत्तियां: समान रूप से छोटी और हल्की-हरी या पीली, पूरी बेल में। • तने का विकास: धीमा और गर्मी के बीच में बंद हो जाता है। • इंटरनोड्स:छोटे। • फलों का पकना: असामयिक। • फलों की गुणवत्ता: खराब, लाल किस्मों में खराब रंग सहित। • ब्लूम-टाइम पेटिओल में कुल N: <1%; ब्लूम-टाइम पेटियोल में नाइट्रेट-एन: <350 पीपीएम। |
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फ़ॉस्फ़ोरस | • फ़ॉस्फ़ोरस-कमी वाले पौधों की जड़ें कमजोर होती हैं, छोटे कद वाले होते हैं, और छोटे, गहरे हरे या भूरे रंग के पत्ते पैदा करते हैं। • फलों का सेट कम हो जाता है, इस प्रकार उत्पादन में कमी आती है। • फास्फोरस की कमी सबसे आम तब होती है जब मिट्टी का पीएच बहुत कम (<5.5) या बहुत अधिक (>7.0) होता है। संदर्भ: क्रिस्टेंसेन |
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पोटैशियम | • पुरानी पत्तियाँ पोटैशियम की कमी के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होती हैं और सीमान्त हरित-हीनता प्रदर्शित करती हैं और, गंभीर मामलों में, पत्ती के किनारे सूख जाते हैं। • पत्तियों पर हल्का गहरा हरा रंग दिखाई देता है। गर्मियों के मध्य से लेकर अंत-अंत तक पत्तों में कांस्य रंग हो सकता है, विशेष रूप से जाली के पश्चिम की ओर। कुछ पत्तियों पर काले दाग या धब्बे विकसित हो सकते हैं। • पोटैशियम-कमी को डोलोमिटिक चूना पत्थर के प्रयोग से बढ़ाया जा सकता है, जिसे पीएच बढ़ाने और मिट्टी को मैग्नीशियम से समृद्ध करने के लिए लगाया जाता है। • पोटैशियम की गंभीर कमी से बेल की ताक़त, बेरी के आकार और फसल की उपज में स्पष्ट रूप से कमी आती है। संदर्भ: क्रिस्टेंसेन |
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मैग्नीशियम | • पुरानी पत्तियों का पीलापन, जो शुरू होता है प्रमुख शिराओं के बीच से और जिनके हर तरफ एक संकीर्ण हरे रंग की सीमा बनी दिखती है। यह अंदर के शिराओं के बीच की हरित-हीनता पहले बिखरे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देती है। नई पत्तियां कम प्रभावित होती हैं। गर्मियों के कई दिनों तक यह स्पष्ट नहीं होता है जब तक कि कमी गंभीर न हो। • टहनियों के अंत में नए उगे पत्तों में यह लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते जब तक पूरी बेल काफी अधिक मात्रा में प्रभावित न हो। • उपज कम हो जाती है। • मैग्नीशियम की कमी उपज को कम कर सकती है और अगर यदि पत्तियों का पीला पड़ना इतना गंभीर हो जाए कि प्रकाश संश्लेषण को बाधित करने लगे तब फलों को पकने में भी देरी हो सकती है। • कमी मुख्य रूप से pH<5.5 वाले भूखंडों में और हल्की मिट्टी पर और बहुत शुष्क वर्षों में नाइट्रोजन, कैल्शियम, या पोटैशियम के उच्च उर्वरक दर प्राप्त करने वाले भूखंडों में प्रकट होती है। संदर्भ: डमी एवं अन्य ., ओहियो, 2005 |
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लोहा | • पहले नई पत्तियों पर शिराओं के बीच में पीलापन दिखाई देता है। अन्य सभी पत्ते गहरे हरे रंग के रहते हैं। • तने की वृद्धि में धीमापन और उपज में कमी। • आयरन की कमी वाले पौधे पीले और काम ऊँचाई वाले होते हैं। • अक्सर क्षारीय (pH> 7.0) या चूने वाली मिट्टी में उगने पर देखा जाता है; इसके अल्वा अधिक चूने, खराब जल निकासी वाली अथवा मिट्टी या पोषक तत्वों के मिश्रण घोल में धातु आयनों के उच्च घनत्व से भी उन परिस्थितियों का निर्माण हो सकता है। संदर्भ: क्रिस्टेंसेन |
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मैंगनीज़ | • लक्षण मध्य-से-देर की गर्मियों में दिखाई देते हैं, एक अंतःस्रावी क्लोरोसिस के रूप में, या जड़ के पास वाली पत्तियों के पीलेपन के रूप में। • चूँकि मैंगनीज़ की कमी केवल पुरानी, कम प्रकाश-संश्लेषण-सक्रिय, पत्तियों को प्रभावित करती है अतः मैंगनीज़ की कमी से उपज हानि शायद ही कभी चिंता का विषय होती है। • मैंगनीज़ की कमी pH>7 मिट्टी, और रेतीली-, चूनेदार-, या अत्यधिक चूने वाली मिट्टी पर होती है। |
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मोलिब्डेनम | • पुराने पत्ते पहले प्रभावित होते हैं, शिराओं के बीच एक सफ़ेद-भूरे रंग के क्षेत्र के रूप में जो कि गंभीर मामलों में पत्तियों के किनारे जलने के रूप में दृष्टिगोचर होता है। इससे अधिक प्रभावित होने पर किनारों के टिश्यू जल कर मर जाते हैं। • पौधे गंभीर रूप से छोटे आकार के रह जाते हैं। |
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ज़िंक | • नई पत्तियाँ पीली दिखाई देती हैं और आकार में छोटी हो जाती हैं। • शिराओं के बीच का पीलापन आयरन की कमी के समान ही दिखाई देता है। • नए विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, गांठों के बीच की दूरी काम रह जाती है जो छोटे अंकुर पैदा करते हैं। • पुरानी पत्तियों में शुरू में शिराओं के मध्य पीले-हरे धब्बे दीखते हैं जो बाद में पीले -सफ़ेद हो जाते हैं। शिराओं के चारो और हरी धारी बानी रहती है। • बहुत कम फूल, जो बाद में फल देने के अक्षम हो सकते हैं। • मुरझाए हुए गुच्छे जिनमें छोटे, कम पके फल होते हैं। |
नाइट्रोजन की कमी |
फास्फोरस की कमी |
पोटैशियम की कमी |
मैग्नीशियम की कमी |
मैंगनीज की कमी |
लोहे की कमी |
ज़िंक की कमी |
ज़िंक की कमी |
उर्वरीकरण के तरीके
मिट्टी पर उपयोग
बैंडिंग + तत्काल डिस्किंग, या फर्टिगेशन द्वारा बेल के 30-60 सेमी के भीतर नाइट्रोजन का समावेश करें।
(बैंडिंग अंगूर की लताओं की पंक्ति के साथ लगी एक संकरी पट्टी में उर्वरक डालने की एक विधि है। अंगूर की बेल के जड़ क्षेत्र में उर्वरकों को अधिक कुशलतापूर्वक और सटीक रूप से पहुंचाने के लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है।)
(तत्काल डिस्किंग मिट्टी में उर्वरक डालने का तरीका है जिसमें इसे जमीन पर डालने के तुरंत बाद मिट्टी में मिला दिया जाता है ताकि यह सामान रूप से वितरित हो जाए और धुप, आंधी आदि द्वारा नुक्सान से बचा रहे।)
यदि नाइट्रोजन उर्वरीकरण की आवश्यकता है, तो रेतीली दोमट मिट्टी पर 35-60 किग्रा/हेक्टेयर नाइट्रोजन का वार्षिक उपयोग, परिपक्व अंगूर के प्लांटेशन के लिए एक अच्छी प्रारंभिक मात्रा है। अंगूर के युवा प्लांटेशन (उनके बढ़त के पहले और दूसरे मौसम में) जिनमें नाइट्रोजन उर्वरीकरण करना हो, उन्हें आमतौर पर 30 किग्रा/हेक्टेयर से अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती है।
खुले मैदानों में ड्रिप सिंचाई द्वारा फर्टिगेशन एवं संरक्षित प्रबंधन
चूंकि ड्रिप सिंचाई इस फसल के लिए बहुत आम है, आमतौर पर पूरी तरह से घुलनशील उर्वरकों का उपयोग करके फर्टिगेशन द्वारा उर्वरीकरण किया जाता है। एन-पी-के-सीए-एमजी के अनुपात को हर विकास चरण में फसलों की जरूरतों के अनुसार ढाला जाना जाना चाहिए।
पत्तों पर छिड़काव द्वारा उर्वरीकरण
ठीक से किया गया पत्तों पर छिड़काव कार्यक्रम आमतौर पर सूक्ष्म पोषक तत्वों पर केंद्रित होता है और फायदेमंद हो सकता है। किसी भी पोषक तत्व का छिड़काव करने से पहले मिट्टी का और साथ ही प्रभावित और सामान्य पत्तियों का प्रयोगशाला में पर्णवृंत विश्लेषण किया जाना चाहिए। यह सिर्फ आँखों देखी लक्षणों की तुलना में अधिक और ठोस सूचना के साथ एक उचित निर्णय लेने में मदद करेगा।
खिलने से 2-3 सप्ताह पहले पत्तियों पर छिड़काव करके जिंक की कमी को ठीक किया जा सकता है। चूंकि आयरन (लोहा) पौधों में गतिहीन होता है, इसलिए केवल मौजूदा पत्तियों पर ही छिड़काव करें। यदि ‘क्लोरोसिस’ गंभीर है और बनी रहती है, तो 10-20 दिनों के अंतराल पर बार-बार डालना आवश्यक हो सकता है।