सोयाबीन के खेती के लिए खाद की विशेषता | Soyabean ke kheti ke liye khad
सोयाबीन के उर्वरीकरण, सर्वोत्तम तरीके, उपयुक्त प्रोडक्ट्स, ज़मीनी परीक्षण और बहुत कुछ जो आपको जानने की आवश्यकता है।
सोयाबीन (Glycine max) उगाने के लिए परामर्श
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सोयाबीन फैबेसी (लेगुमिनोसे) परिवार से संबंधित एक वार्षिक फसल है।
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सोयाबीन के पौधों में एक या एक से अधिक तने होते हैं जहाँ तीन टहनियों वाली संरचना विकसित होती है। फूल गांठों में बनते हैं, और ये फूल उन फलियों को उत्पन्न करेंगे जिनमें अनाज या बीज होते हैं।
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सोयाबीन के पौधों में धुरी जड़ प्रणाली होती है जो 1.80 मीटर तक की गहराई तक जा सकती है, हालांकि उसका 60 से 70% तक का भाग 0.15 मीटर की गहराई पर ही होता है। जड़ों में गांठें होती हैं जहां जैविक नाइट्रोजन का स्थिरीकरण या भण्डारण होता है।
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इसके दानों की सामान्य सामग्री है: तेल 17% से 22%, प्रोटीन: 38% से 45% और: 30% से 35% कार्बोहाइड्रेट।
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फसल विकास के चरणों को वानस्पतिक चरण (VE से Vn के रूप में वर्णित) और प्रजनन चरण (R1 से R8 के रूप में वर्णित) के रूप में परिभाषित किया गया है।
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उचित विकास के लिए सोयाबीन को अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। संकुचित मिट्टी में, अंकुरण के समय जड़ और तने के बाच का कोमल हिस्सा ऊपर आने के दौरान किसी भी दबाव से आसानी से टूट सकता है। ऐसे में जड़ प्रणाली भी गहरी नहीं होगी।
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फसल का विकास 20°C और 35°C के बीच बेहतर होगा। 15°C से कम तापमान अंकुरण और बढ़ने को बाधित कर सकता है तथा रोगों में वृद्धि की सम्भावना बानी रहती है। 40°C से ऊपर तापमान भी विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, फूल आने में मुश्किल पैदा करता है, और फली को बनाए रखने की पौधों की क्षमता को कम करता है। इसके ऊपर यदि पानी की कमी हो तो यह समस्याएं और बढ़ जाती हैं।
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पानी के सन्दर्भ में, उच्च सोयाबीन उपज प्राप्त करने के लिए लगभग 700 मिलीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है। वानस्पतिक विकास स्टेज के दौरान वर्षा का आदर्श वितरण 200 से 250 मिलीमीटर (35%) और प्फसल बनाने के स्टेज के दौरान 450 से 500 मिलीमीटर (65%) होना चाहिए।
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फूल आने के दौरान पानी की कमी (शुष्क काल) गंभीर रूप से उपज को कम कर सकती है, विशेष रूप से रेतीली मिट्टी में और उन क्षेत्रों में जहां कैल्शियम की कमी या मिट्टी में एल्यूमीनियम विषाक्तता के कारण जड़ प्रणाली सतही होती है। ब्राजील के सेराडो प्रान्त में, बारिश की कमी वाले दिनों की संख्या के आधार पर 10% से लेकर 70% तक के नुकसान की खबरें हैं।
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फसल के अंतिम स्टेज में पकने के लिए शुष्क मौसम आवश्यक है।
सोयाबीन के युवा पौधे
सोयाबीन फसल की क्यारियां
पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ
समशीतोष्ण क्षेत्र, मोलिसोल (यूएसए) में आवश्यकताएं
पौधे का भाग | N किलो / टन | P किलो / टन | K किलो / टन | Ca किलो / टन | Mg किलो / टन | S किलो / टन | B ग्राम /टन | Cu ग्राम /टन | Fe ग्राम /टन | Mn ग्राम /टन | Zn ग्राम /टन |
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अनाज | 59 | 11.5 | 2.6 | 11.6 | 2.6 | 3.4 | 32 | 11.6 | 72 | 28 | 42 |
अन्य भाग | 23 | 3.2 | 29 | 31.6 | 12.6 | 2.3 | 64 | 7.2 | 181 | 92 | 59 |
कुल (अपटेक) | 82 | 14.7 | 52 | 34.5 | 15.2 | 5.7 | 97 | 18.8 | 253 | 120 | 101 |
% ऑफटेक | 72% | 78% | 44% | 8% | 17% | 60% | 33% | 61% | 28% | 23% | 41% |
स्रोत: बेंडर एवं अन्य, 2015, यूएसए। 3.4 टन/हेक्टेयर की उपज पर 3 किस्मों का औसत।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, ऑक्सीसोल और अल्टीसोल (ब्राजील) में आवश्यकताएं
पौधे का भाग | N किलो /टन | P किलो /टन | K किलो /टन | Ca किलो /टन | Mg किलो /टन | S किलो /टन | B ग्राम /टन | Cu ग्राम /टन | Fe ग्राम /टन | Mn ग्राम /टन | Zn ग्राम /टन |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
अनाज | 54 | 4.8 | 18 | 2.8 | 2.5 | 2.8 | 31 | 11.5 | 65 | 39 | 41 |
अन्य भाग | 24 | 2 | 30 | 1.3 | 8.2 | 1.4 | 51 | 8.3 | 310 | 159 | 34 |
कुल (अपटेक) | 78 | 6.8 | 48 | 22.1 | 10.7 | 4.2 | 82 | 19.8 | 375 | 198 | 75 |
% ऑफटेक | 69% | 71% | 37% | 13% | 24% | 66% | 38% | 58% | 17% | 20% | 55% |
स्रोत: एम्ब्रापा (2020), ब्राजील। 3.4 टन/हेक्टेयर की उपज पर 5 किस्मों का औसत।
फसल के मौसम में सोयाबीन द्वारा ग्रहण पोषक तत्वों की गतिविधियां
सोयाबीन को दुनिया भर में सबसे विविध प्रकार की मिट्टियों में उगाया जाता है, उदाहरण के लिए, मोलिसोल और अल्फिसोल (उच्च उर्वरता के साथ तटस्थ से क्षारीय मिटटी) से ऑक्सीसोल और अल्टिसोल (अम्लीय, कम उर्वरता वाली मिटटी)। किसान के लिए लाभदायक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रत्येक प्रकार की मिट्टी की उर्वरता का सही प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है।
अलग-अलग क्षेत्रों में पोषक तत्वों का उठाव एवं ग्रहण बहुत समान है, फ़ॉस्फोरस के अपवाद के साथ जो समृद्ध मिट्टी पर उगाए गए अनाज में अधिक होता है।
पोषक तत्वों के ग्रहण की गतिविधियां
- फली और अनाज के विकास के दौरान ग्रहण में वृद्धि
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- नाइट्रोजन, फ़ॉस्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम : R4 स्टेज तक 50-55% ग्रहण; 45-50% उसके बाद
- सल्फ़र: R4 स्टेज तक 45% ग्रहण; 55% उसके बाद
- K2O (पोटैशियम ऑक्साइड): R2 स्टेज तक 50% ग्रहण; 50% उसके बाद
- रेतीली मिट्टी में स्प्लिट फर्टिलाइजेशन की संभावना अधिक होती है (विशेषकर K2O और सल्फ़र के साथ), बुवाई के समय एक हिस्से को लगाया जाता है और शेष को 2-3 सप्ताह बाद ऊपरी रूप से डाला जाता है।
- एक और संभावना उन उर्वरकों का उपयोग करना है जो धीमी गति से, लंबे समय तक, पोषक तत्वों की उपलब्धता प्रदान करते हैं।
पोषक तत्वों की भूमिका
नाइट्रोजन
सोयाबीन की फसल के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व नाइट्रोजन है; यह वह तत्व है जो सबसे अधिक मात्रा में भी आवश्यक है। 1,000 किलो सोयाबीन के उत्पादन के लिए 80 किलो नाइट्रोजन की जरूरत होती है। हालांकि, सोयाबीन की अधिकांश नाइट्रोजन आवश्यकताएं पौधे की जड़ों पर नोड्यूल्स में रहने वाले ‘राइजोबियम’ बैक्टीरिया द्वारा सिम्बिऑटिक फिक्सेशन (सहजीवी बंधन) के माध्यम से हवा की नाइट्रोजन से पूरी की जाती हैं। जैविक विधि से नाइट्रोजन का बंधन सोयाबीन के पौधे के लिए आवश्यक सभी नाइट्रोजन की आपूर्ति कर सकता है, लेकिन फसल में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा की उपलब्धता के विचाराधीन कुछ नाइट्रोजन उर्वरकों को फसल पर डालना एक सामान्य अभ्यास है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि नाइट्रोजन उर्वरक की यह मात्रा 20 किग्रा/हेक्टेयर से अधिक न हो।
फ़ॉस्फोरस
पौधों में फ़ॉस्फोरस का कार्य सीधे ऊर्जा भंडारण से संबंधित है। फ़ॉस्फोरस प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से पोषक तत्वों के अवशोषण के लिए आवश्यक है और उच्च ऊर्जा मूल्य वाले कार्बनिक यौगिकों के निर्माण में इसकी भूमिका है। सोयाबीन के लिए इसका मतलब उसके दानों में तेल की मात्रा है।
पोटैशियम
पोटैशियम कार्बोहाइड्रेट के निर्माण और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है, और रोगों को कम करने में भी सहायता करता है। पोटैशियम की पर्याप्त आपूर्ति स्वस्थ पौधों की उपज में सहायक है।
कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फ़र
कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फ़र क्रमशः जड़ वृद्धि, प्रकाश संश्लेषण और अनाज के दानों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व हैं।
मोलिब्डेनम
मोलिब्डेनम एंजाइम ‘नाइट्रोजिनेज़’ का एक घटक है जो नाइट्रोजन का बंधन करने वाले बैक्टीरिया में पाया जाता है। कोबाल्ट के साथ मिलकर यह नाइट्रोजन के कुशल गठबंधन और जैविक स्थिरीकरण के लिए आवश्यक है। सोयाबीन उगाई जाने वाली अधिकांश मिट्टी पर इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति एक बुनियादी अभ्यास है।
मैंगनीज़
मैंगनीज पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उन सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक होता जा रहा है जिसकी सोयाबीन की फसलों में सबसे अधिक कमी होती है। राउंडअप-रेडी (जिसे आरआर, या ‘ग्लाइफोसेट के प्रति सहनशील’ के रूप में भी जाना जाता है) किस्मों के उपयोग के कारण, या अत्यधिक चूना होने के कारण पौधे द्वारा मैंगनीज के ग्रहण में कमी हो सकती है।
बोरॉन
पराग अंकुरण और पराग नली के विकास में बोरॉन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हो सकता है कि बोरॉन की कमी के लक्षण हमेशा स्पष्ट न हों, जिसके कारण इसे ‘छिपी हुई आवश्यकता’ कहा जाता है। वास्तविकता में बोरॉन की कमी का अनाज उत्पादन, और इसलिए उपज, पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पोषक तत्वों की कमी
पोषक तत्व | विवरण | |
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नाइट्रोजन | पूरी तरह से पीलेपन के बाद पुरानी पत्तियों का मर जाना। नाइट्रोजन की कमी वाली फसलों में अनाज में प्रोटीन की मात्रा कम होगी। मॉलिब्डेनम (Mo) की अनुपस्थिति से नाइट्रोजन की कमी हो जाएगी। |
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फ़ॉस्फ़ोरस | कम वृद्धि वाले पौधे, फलियों का कम सम्मिलन, और नीले-हरे रंग के पुराने पत्ते। | |
पोटैशियम | अंतःस्रावी पीलापन जिसके बाद प्युट्रेसिन (रंगहीन, दुर्गंधयुक्त सड़ांध) के कारण, पुरानी पत्तियों के किनारों और शीर्ष पर परिगलन होता है; पौधे आग से झुलसे हुए या कीटनाशकों द्वारा जले हुए से क्षतिग्रस्त दिखाई देते हैं। कम ताक़त और कम अंकुरण दर वाले छोटे, झुर्रीदार और विकृत दाने। | |
कैल्शियम | कोशिका झिल्ली "झरझरा" हो जाती है, कोशिका के दीवारों को तोड़ देती है, और केवल वांछनीय आयनों को अवशोषित करने की झिल्ली की चयनात्मकता खो देती है; जड़ें और अंकुर दोनों में ही विकास बिंदु प्रभावित होते हैं। पौधे के युवा भागों में लक्षण दिखाई देते हैं, जड़ प्रणाली का शोष होता है, पौधे की सबसे ऊपरी कली मर जाती है; प्राथमिक पत्तियों के निकलने में देरी होती है और जब वे निकलती हैं तो कप के आकार की हो जाती हैं - इसे झुर्रियाँ पड़ना कहते हैं। सेल्युलोसिक दीवार के विघटन के कारण पर्णवृंत भी ढह जाता है। ये लक्षण आमतौर पर अम्लीय मिट्टी में होते हैं और एल्युमीनियमऔर मैंगनीज़ विषाक्तता से जुड़े होते हैं। | |
मैग्नीशियम | पुरानी पत्तियों में हल्के हरे रंग की शिराओं के साथ आंतरिक हरित हीनता (हल्का पीला) दिखाई देता है। | |
सल्फ़र | एकसमान हरित हीनता जो नाइट्रोजन की कमी के समान है लेकिन युवा पत्तियों में होती है, जबकि नाइट्रोजन की कमी के कारण पुरानी पत्तियों में हरित हीनता होती है। |
स्रोत: एम्ब्रापा, ब्राजील; आईपीएनआई; आईपीआई
सोयाबीन के पोषण और उर्वरीकरण सम्बंधित प्रमुख पहलू
उचित वृद्धि और विकास के लिए सोयाबीन को अच्छे पोषण की आवश्यकता होती है। पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी के परिणामस्वरूप पौधे की वृद्धि असामान्य या सामान्य से कम होती है, पौधों में किसी भी विशेष पोषक तत्व की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं जैसा कि ऊपर वर्णित है।
सोयाबीन एक उच्च प्रोटीन वाली फसल है और इसमें अमीनो एसिड और प्रोटीन को संश्लेषित करने के लिए बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन(N) की आवश्यकता होती है, करीब 80 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति टन अनाज के आस पास। सोयाबीन की फसलों के लिए नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण है, जहां वायुमंडलीय नाइट्रोजन(N2) जड़ों की गांठों में अमोनियम(NH4+) में परिवर्तित होता है।
जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण में बढ़ोतरी करने और अतिरिक्त नाइट्रोजन उर्वरक की आवश्यकता को दूर करने के लिए किसानों को सोयाबीन के बीजों को ‘ब्रैडीरिज़ोबियम’ का टीका लगाना चाहिए (न्यूनतम 12 लाख व्यवहार्य कोशिकाएं प्रति बीज)।
सोयाबीन के लिए मिट्टी का आदर्श पीएच 5.5 से 7.0 के बीच है। अम्लीय मिट्टी की पीएच को 5.5 से ऊपर बढ़ाने के लिए चूनाकरण की आवश्यकता होगी। एक ओर चूनाकरण की प्रक्रिया कैल्शियम और मैग्नीशियम प्रदान करती है और मिटटी का पीएच बढ़ा कर एल्यूमीनियम के विषाक्त प्रभावों को बेअसर करती है वही दूसरी तरफ यह उर्वरीकरण और जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण की दक्षता में वृद्धि भी करती है।
सोयाबीन की जड़ प्रणालियों को मिट्टी की संरचना में कैल्शियम के अच्छे स्तर की आवश्यकता होती है। मिट्टी में एल्यूमीनियम के उच्च घनत्व के प्रति सोयाबीन की कम सहनशीलता है। ऐसे में एल्यूमीनियम की विषाक्तता को कम करने या खत्म करने के लिए, और गहरी मिट्टी की परतों (>20 सेमी) में कैल्शियम को बढ़ाने के लिए जिप्सम (CaSO44), या ऐसे उर्वरक जिनमें जिप्सम होता है, का उपयोग किया जाना चाहिए।
मिट्टी में पोटेशियम और फ़ॉस्फोरस उपलब्ध होना चाहिए। सामान्य तौर पर, मिट्टी में फ़ॉस्फोरस का स्तर 20 mg/dm3 ( मिलीग्राम प्रति क्यूबिक डेसीमीटर) या अधिक होना चाहिए। हलकी-अम्लीय से क्षारीय मिट्टी, जहां आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले फ़ॉस्फोरस एक्सट्रैक्टर्स ब्रे-1 और ओल्सेन हैं, में P2O5 (फ़ॉस्फोरस पेंटॉक्साइड ) दरें 20 से 90 किलोग्राम/हेक्टेयर के बीच होती है और यह मिट्टी में फ़ॉस्फोरस की मात्रा पर निर्भर करती है। दूसरी ओर अधिक अम्लीय मिट्टी, जिसमें आयरन और एल्युमिनियम ऑक्साइड द्वारा अधिक फ़ॉस्फोरस का स्थिरीकरण करने की क्षमता होती है, उसमें मुख्य एक्सट्रैक्टेंट मेहलिच-1 है, उसमें पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है -कम से कम 60 किग्रा/हेक्टेयर P2O5, जो कि 150 किलोग्राम/हेक्टेयर से अधिक मात्रा तक पहुँच जाता है। इन मामलों में, फ़ॉस्फोरस को रोपण से पहले (एक सुधारात्मक प्रक्रिया के रूप में) आंशिक रूप से लगाने और बुवाई के दौरान शेष मात्रा को डालने का सुझाव दिया जाता है। फसल की उपज क्षमता को बनाए रखने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। फ़ॉस्फोरस के मुख्य स्रोत सिंगल सुपरफॉस्फेट (एस एस पी), ट्रिपल सुपरफॉस्फेट (टी एस पी ) और मोनोअमोनियम फ़ॉस्फ़ेट (एम ए पी) हैं।
पोटैशियम का स्तर 120 mg/dm3 से ऊपर होना चाहिए। पोटैशियम का मुख्य स्रोत KCl (पोटैशियम क्लोराइड) है, लेकिन कुछ वैकल्पिक स्रोत हैं जो पोटैशियम और अन्य मैक्रोन्यूट्रिएंट्स की आपूर्ति करते हैं (उदाहरण के लिए आईसीएल का पॉलीसल्फेट जो पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फ़र की आपूर्ति करता है)। खाद डालने की दर मिट्टी में पोटैशियम की मात्रा के अनुसार बदल सकती है, लेकिन आमतौर पर वह दर K2O के 50 किग्रा/हेक्टेयर से 120 किग्रा/हेक्टेयर तक होती हैं।
जिन क्षेत्रों में एल्युमिनियम की विषाक्तता को कम करने के लिए जिप्सम का प्रयोग नहीं किया जाता है, वहां PK (फ़ॉस्फोरस -पोटैशियम) के साथ सल्फ़र का प्रयोग किया जाना चाहिए। ‘ऑक्सीसोल्स’ और ‘अल्टीसोल्स’ में, सुझाई गई खुराक 3 से 5 किग्रा/ टन उत्पादित अनाज, तक है। मॉलिसोल, अल्फिसोल और उच्च जैविक खाद की मात्रा वाली मिट्टी में आमतौर पर सल्फर के उपयोग से कोई अतरिक्त आर्थिक लाभ नहीं होता। हालांकि, कम उत्पादकता के रिकॉर्ड वाले खेतों में अल्फाल्फा और मकई जैसी फसलों के लिए 10-15 किग्रा सल्फ़र /हेक्टेयर की खुराक का सुझाव दिया गया है।
कैल्शियम और मैग्नीशियम की आपूर्ति सामान्य रूप से चूनकरण की पद्यति से होती है। हालांकि, कम सीटीसी वाले ऑक्सीसोल में इन पोषक तत्वों की गुणवत्ता वाले, पानी में घुलनशील, उर्वरकों के उपयोग से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। सुझाई गई मात्रा, 15-20 किग्रा/हेक्टेयर कैल्शियम और 5-10 किग्रा/हेक्टेयर मैग्नीशियम की है।
मोलिब्डेनम (Mo) और कोबाल्ट (Co) सहित उर्वरक योजना में सूक्ष्म पोषक तत्वों को शामिल करना, जैविक नाइट्रोजन के मिटटी में स्थिरीकरण को बढ़ावा देता है। अम्लीय ऑक्सिसॉल और अल्टीसोल में मुख्य कमियां बोरॉन (B), कॉपर (Cu), मोलिब्डेनम (Mo), मैंगनीज (Mn) और जिंक (Zn) हैं। इन्हें बीजों के साथ, मिट्टी में, या पत्तों पर छिड़काव वाले उर्वरक के रूप में लगाया जा सकता है। क्षारीय मिट्टी में आयरन (Fe), मैंगनीज (Mn) और जिंक (Zn) की मुख्य कमी होती है।